“झांसी की रानी” “Jhansi Ki Rani” यह कविता हिंदी साहित्य में सबसे जयादा पढ़ी जाने वाली कविता है जिसको लिखने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान थीं। उनका जन्म प्रयागराज (अलाहबाद) के निहालपुर गाँव में हुआ था।

1919 में खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह ने उन्हें अपनी पत्नी बनने के लिए कहा। भले ही वह एक अच्छी पत्नी और माँ थीं, लेकिन वह स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल हो गईं। वह नागपुर में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला सत्याग्रही थीं।
उनकी कविताएँ बहुत देशभक्तिपूर्ण थीं और लोगों को प्रभावित करती थीं। उनकी कुछ कृतियाँ “सेनानी का स्वागत” और “वीरोंका कैसे हो वसंत” हैं। उनकी कविता “झांसी की रानी” हिंदी साहित्य में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली कविता थी।
15 फरवरी, 1949 को एक कार दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। Subhadra Kumari Chauhan या सुभद्रा कुमारी चौहान (1904-1948 )
आईये एक बार फिर सुबद्रा जी को याद करते हुए उनकी ये कविता पढ़ते हैं और उनकी इस बहुमूल्य कविता के लिए उन्हें दिल से धन्यवाद करते हैं ।
कविता : “झांसी की रानी” “Jhansi Ki Rani”

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटि तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नई जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सब ने मन में ठानी थी।
चमक उठी सं सत्तावन में, ये तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

कानपुर की नाना की मुंह बोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वो संतान अकेली थी,
नाना संग संघ पढ़ती थी वो नाना संग संघ खेली थी
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी, उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथाएँ उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वो स्वंय वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों की वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्या भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आयी लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बाजी बधाई ख़ुशियाँ छायीं झाँसी में,
सुभट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी झाँसी में।
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजयाली छायी,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लायी,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भायी,
रानी विधवा हुई हाय! विधि को भी दया नहीं आई।
निःसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौजी मन में हर्षाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फ़ौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज झाँसी आया।
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

अनुनय विनय नहीं सुनता है, विकट फिरंगी की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब वह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे अब तो पलट गयी काया,
राजाओँ नवाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यहदासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

छीनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बातों,
क़ैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक की कौन बिसात,
जबकी सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ वह वज्र-निपात।
बंगाल, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

रानी रोयीं रनिवासों में बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने-कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे-आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अख़बार,
“नागपुर के ज़ेवर ले लो, लखनऊ की लो नौलख हार”।
यों परदे की इज्जत परदेसी के हाथ बिकानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

कुटियों में थी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहन छबीली ने रण-चंडी का कर दिया प्रकट आह्वान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोयी ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगायी थी,
ये स्वतंत्रता की चिंगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छायी थीं,
मेरट, कानपुर, पटना ने भारी धूम मचायी थी,
जबलपुर, कोल्हापुर, में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

इस स्वतंत्रता-महायज्ञ में कई वीरवर आये काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अजीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवर सिंह, सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास-गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुर्बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

इनकी गाथा छोड़ चलें हम झाँसी के मैदानों में,
जहां खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद्व असमानों में।
ज़ख्मी होकर वॉकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

रानी बड़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अँग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबकी जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुँह की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के सँग आयी थीं,
युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किंतु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार पर वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी, उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वो सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी,
ये तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू ख़ुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।
Reference : पुस्तक : स्वतंत्रता पुकारती (पृष्ठ 198) संपादक : नंद किशोर नवल रचना : सुभद्राकुमारी चौहान प्रकाशक : साहित्य अकादेमी